दिवाली का त्योहार नज़दीक आते ही दिल्ली पटाखा बैन 2025 एक बार फिर सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट में इस साल पटाखों पर लगे स्थायी प्रतिबंध को हटाने की याचिका पर सुनवाई हुई, लेकिन अब इसे शुक्रवार तक के लिए टाल दिया गया है। केंद्र सरकार ने अदालत से निवेदन किया कि उसे थोड़ा और समय दिया जाए ताकि पटाखा उद्योग में काम करने वाले लाखों लोगों के रोजगार और नागरिकों के स्वच्छ हवा के अधिकार के बीच एक संतुलित समाधान तैयार किया जा सके। सरकार का कहना है कि यह मसला सिर्फ पर्यावरण से जुड़ा नहीं है, बल्कि इससे सीधे तौर पर हज़ारों परिवारों की आजीविका भी प्रभावित होती है। ऐसे में अदालत का आने वाला फैसला इस साल की दिवाली की चमक और दिल्ली की हवा दोनों पर बड़ा असर डाल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टली, उम्मीदें बरकरार
बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार दिल्ली पटाखा बैन 2025 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर किसी भी तरह की जल्दबाज़ी नहीं करना चाहती। उनका कहना था कि यह मामला सिर्फ पटाखों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़े लाखों कामगारों की रोज़ी-रोटी और देश की वायु गुणवत्ता, दोनों का सवाल है। उन्होंने अदालत से थोड़ा और समय मांगा ताकि ऐसा समाधान तैयार किया जा सके, जिससे प्रदूषण पर नियंत्रण भी बना रहे और रोजगार पर कोई नकारात्मक असर न पड़े। इस पर चीफ जस्टिस भूषण आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने टिप्पणी की कि यह मामला सचमुच “संतुलन की परीक्षा” जैसा है। अदालत ने दलीलें सुनने के बाद अगली सुनवाई शुक्रवार के लिए तय कर दी, जिससे अब सबकी निगाहें उस दिन के फैसले पर टिकी हैं।
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दिवाली से पहले राहत की उम्मीद
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी करते हुए ग्रीन पटाखों के उत्पादन को मंजूरी दी थी, हालांकि उनकी बिक्री पर अभी भी दिल्ली-NCR में रोक बरकरार है। यह फैसला दिल्ली पटाखा बैन 2025 के बीच पटाखा उद्योग के लिए एक आंशिक राहत लेकर आया, लेकिन बिक्री की अनुमति न मिलने से यह खुशी अधूरी रह गई।
अब नज़रें शुक्रवार को होने वाली अगली सुनवाई पर हैं, जहां उद्योग से जुड़े लोग और आम नागरिक दोनों उम्मीद कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस बार ग्रीन पटाखों को लेकर कुछ रियायत दे सकता है। अगर ऐसा होता है, तो इस साल की दिवाली थोड़ी और रोशन हो सकती है।
सरकार की चुनौती: स्वच्छ हवा बनाम रोजगार
केंद्र सरकार ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि दिल्ली पटाखा बैन 2025 केवल पर्यावरण का मामला नहीं है, बल्कि इसके फैसले से लाखों परिवारों की आजीविका भी सीधे प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह तर्क पेश किया कि सरकार का लक्ष्य ऐसा संतुलन बनाना है जिसमें हवा की गुणवत्ता भी सुरक्षित रहे और रोजगार पर भी असर न पड़े।
उनका कहना था कि हर साल सर्दियों में दिल्ली का वायु प्रदूषण गंभीर रूप ले लेता है, लेकिन इसी के बावजूद पूर्ण प्रतिबंध लागू करने के बजाय, एक समझदारी भरी और संतुलित नीति अपनाना जरूरी है, ताकि पर्यावरण और रोजगार दोनों का ध्यान रखा जा सके।
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पटाखा निर्माताओं की दलील: “सिर्फ पटाखों को दोष क्यों?”
पटाखा उद्योग के वरिष्ठ वकील बलवीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क पेश किया कि प्रदूषण के लिए केवल पटाखों को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है। उनका कहना था कि दिल्ली में सर्दियों के दौरान हवा की गुणवत्ता पर सबसे बड़ा असर पराली जलाने और वाहनों के उत्सर्जन का होता है, न कि सिर्फ पटाखों का। उन्होंने अदालत को याद दिलाया कि दिल्ली पटाखा बैन 2025 का निर्णय अभी तक वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं है, क्योंकि कोई भी अध्ययन यह प्रमाणित नहीं कर सका कि केवल पटाखों की वजह से प्रदूषण में इतनी भारी बढ़ोतरी होती है। उनका यह भी कहना था कि अगर नीति संतुलित और तथ्यपरक नहीं हुई, तो यह उद्योग और आम जनता दोनों के लिए अनुचित परिणाम ला सकती है।
ग्रीन पटाखों की सच्चाई और चुनौतियां
ग्रीन पटाखों को पारंपरिक पटाखों की तुलना में पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि इनमें बेरियम, एल्युमिनियम और नाइट्रेट्स जैसी हानिकारक रसायनों की मात्रा काफी कम होती है, जिससे धुआं और आवाज़ दोनों नियंत्रित रहते हैं। केवल NEERI (नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) और PESO (Petroleum and Explosives Safety Organisation) से प्रमाणित निर्माता ही ग्रीन पटाखों का उत्पादन कर सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 1,400 ग्रीन पटाखा निर्माता हैं, जिनमें अधिकांश उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में स्थित हैं।
हालांकि, CAQM (Commission for Air Quality Management) ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि कुछ निर्माता अपने QR कोड गैर-पंजीकृत कंपनियों को बेच देते हैं, जिससे बाजार में नकली ग्रीन पटाखे पहुंच जाते हैं। इसके अलावा, NEERI ने भी स्वीकार किया है कि ग्रीन पटाखों की नियमित जांच नहीं होती, जिससे उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ऐसे सभी पहलुओं के बीच यह स्पष्ट है कि दिल्ली पटाखा बैन 2025 और ग्रीन पटाखों की नीति दोनों ही संतुलन और निगरानी पर निर्भर हैं।
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सुप्रीम कोर्ट का रुख: “पूर्ण प्रतिबंध समाधान नहीं”
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि पूर्ण प्रतिबंध किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। अदालत ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे बिहार में अवैध खनन पर रोक लगाने के बाद माफिया और अवैध कारोबार बढ़ गया, वैसे ही दिल्ली पटाखा बैन 2025 पर पूरी तरह रोक लगाने से काला बाजार और अवैध बिक्री बढ़ने की संभावना है। यही कारण है कि कोर्ट का रुख अब एक संतुलित मॉडल की ओर है, जिसमें न सिर्फ प्रदूषण को नियंत्रित रखा जा सके, बल्कि पटाखा उद्योग और उससे जुड़े रोजगारों पर भी नकारात्मक असर न पड़े। सुप्रीम कोर्ट की यह समझदारी भरी रणनीति उद्योग और आम जनता दोनों के लिए एक व्यवहारिक समाधान प्रदान करने की कोशिश है।
सीएम रेखा गुप्ता की राय: “ग्रीन पटाखों के बिना अधूरी है दिवाली”
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि दिवाली के त्योहार की खुशियों के लिए ग्रीन पटाखों की अनुमति बेहद जरूरी है। उनका कहना था कि आतिशबाज़ी के बिना दिवाली अधूरी लगती है, इसलिए दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट से इस साल दिल्ली पटाखा बैन 2025 के बीच ग्रीन पटाखों की controlled अनुमति की अपील करेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल NEERI और PESO द्वारा प्रमाणित ग्रीन पटाखों को ही अनुमति दी जाएगी, ताकि त्योहार के दौरान प्रदूषण नियंत्रण बनाए रखा जा सके।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार अपने पर्यावरणीय दायित्वों को समझती है ग्रीन पटाखों के बिना अधूरी है दिवाली, लेकिन साथ ही लोगों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का सम्मान करना भी उतना ही जरूरी है। उनकी यह पहल इस साल दिवाली में सुरक्षित और खुशहाल आतिशबाज़ी सुनिश्चित करने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।
जनता की भावना: “त्योहार में थोड़ी रौशनी होनी ही चाहिए”
दिल्ली और NCR में लोगों की प्रतिक्रियाएं इस साल की दिवाली को लेकर मिश्रित हैं। कई लोग मानते हैं कि त्योहार की रौनक और खुशियों के लिए पटाखों का होना जरूरी है, वरना दिवाली फीकी लगती है। वहीं, कुछ लोग प्रदूषण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कड़े नियमों के समर्थन में हैं। इसके बीच अधिकांश जनता की उम्मीद यही है कि सुप्रीम कोर्ट इस साल दिल्ली पटाखा बैन 2025 के दौरान ग्रीन पटाखों को नियंत्रित तरीके से अनुमति दे। उनका मानना है कि इससे ना केवल पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, बल्कि दिवाली की रौशनी और खुशियों का महत्व भी बना रहेगा। यह संतुलन दर्शाता है कि नियम और उत्सव दोनों को साथ लेकर चलना संभव है।
अब सबकी नजरें शुक्रवार की सुनवाई पर
अब पूरे देश की नजरें सुप्रीम कोर्ट की शुक्रवार को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं। यह सुनवाई तय करेगी कि इस साल दिल्ली पटाखा बैन 2025 के तहत दिल्ली-NCR में पटाखों पर प्रतिबंध जारी रहेगा या अदालत ग्रीन पटाखों को सीमित और नियंत्रित अनुमति देगी। यदि कोर्ट अनुमति देती है, तो यह न केवल पटाखा उद्योग के लिए बड़ी राहत साबित होगी, बल्कि दिल्लीवासियों के लिए इस दिवाली को सुरक्षित और रोशन बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा।
इस फैसले का असर सीधे तौर पर त्योहार की रौनक, पर्यावरण और रोजगार सभी पर पड़ेगा, इसलिए सबकी निगाहें अब शुक्रवार के फैसले पर ही टिक गई हैं।
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