लाइ चिंग (Lai Ching) बने ताइवान के नए राष्ट्रपति: चीन को दी हिदायत

लाइ चिंग (Lai Ching) बने ताइवान के नए राष्ट्रपति: चीन को दी हिदायत

लाई चिंग अब ताइवान के नए राष्ट्रपति बन गए हैं | विलियम लाई चिंग-ते ने 20 मई 2024 को ताइवान के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। यह सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के लिए लगातार तीसरा कार्यकाल है। निवर्तमान राष्ट्रपति त्साई-इंग वेन भी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी से थी और विलियम लाई चिंग-ते त्साई-इंग वेन के प्रशासन में उप राष्ट्रपति थे । ताइपे, ताइवान की राजधानी में शपथ ग्रहण समारोह में 29 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए | इस शुभ अवसर पर नव नियुक्त राष्ट्रपति ने अपने वक्तव्य में चीन के द्वारा ताइवान के खिलाफ आक्रमकता को कम करने की हिदायत भी दी | उनका प्रशासन “ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता बनाए रखने” का प्रयास में अग्रसर रहने वाला है |
चीन और ताइवान के संबंध: जटिल और विवादास्पद
चीन और ताइवान के बीच संबंध जटिल और विवादास्पद रहे हैं, जिनकी जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत में गृहयुद्ध में निहित हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

• 1912 में चीन में क्रांति के बाद, सन यात-सेन के नेतृत्व में कुओमिंतांग (KMT) पार्टी ने शासन संभाला।
• 1930 के दशक में, जापान ने चीन पर आक्रमण किया, जिसके कारण KMT और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच गठबंधन हुआ।
• द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, गृहयुद्ध फिर से शुरू हुआ, जिसमें कम्युनिस्टों ने 1949 में जीत हासिल की और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की स्थापना की।
• KMT ने ताइवान द्वीप पर शरण ली और रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) की सरकार बनाई।
मुख्य मुद्दे:
• एक चीन नीति: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना एक “एक चीन” नीति का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि वे ताइवान को चीन का एक विद्रोही प्रांत मानते हैं और अंततः इसे बलपूर्वक या शांतिपूर्ण तरीके से अपने साथ मिलाने का लक्ष्य रखते हैं।
• स्वतंत्रता बनाम एकीकरण: रिपब्लिक ऑफ़ चाइना, ताइवान की स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाए रखने की मांग करता है। वे खुद को चीन से अलग एक स्वतंत्र राष्ट्र मानते हैं।
• अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को केवल 14 देशों द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त है, जबकि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को संयुक्त राष्ट्र और अधिकांश देशों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
• सैन्य तनाव: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ने बार-बार धमकी दी है कि यदि रिपब्लिक ऑफ़ चाइना स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा करता है तो वह सैन्य बल का उपयोग करेगा।
• आर्थिक संबंध: दोनों देशों के बीच घनिष्ठ आर्थिक संबंध हैं, और ताइवान चीन की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है।
हालिया घटनाक्रम:
• हाल के वर्षों में, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ने ताइवान पर अपना दबाव बढ़ा दिया है, सैन्य अभ्यास बढ़ा दिया है और द्वीप के आसपास अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है।
• 2022 में, चीन ने घोषणा की कि वह ताइवान के साथ किसी भी आधिकारिक संपर्क को काट देगा जो “एक चीन” नीति का उल्लंघन करता है।
• अमेरिका ने ताइवान को सुरक्षा सहायता प्रदान करना जारी रखा है और चीन के आक्रामक व्यवहार की निंदा की है।
भविष्य की संभावनाएं:
चीन और ताइवान के बीच संबंध अनिश्चित बने हुए हैं।
• कुछ विश्लेषकों का मानना है कि युद्ध अपरिहार्य है, जबकि अन्य का मानना है कि दोनों पक्ष शांतिपूर्ण समाधान खोजने में सक्षम हो सकते हैं।
• ताइवान की स्थिति क्षेत्रीय और वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।
एक चाइना निति क्या है ?
एक चीन नीति:

एक चीन नीति चीन जनवादी गणराज्य (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना) की एक विदेश नीति है, जिसके तहत यह दावा करता है कि केवल एक चीन है और ताइवान द्वीप, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का एक अविभाज्य हिस्सा है।
यह नीति पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना (1949) से ही चली आ रही है, और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी देश ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता न दे।
नीति के मुख्य बिंदु:
• एक ही सरकार: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का मानना है कि चीन पर शासन करने का केवल एक ही वैध अधिकार है, और वह ताइवान द्वीप पर स्थित ROC सरकार को मान्यता नहीं देता है।
• एक क्षेत्र: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का दावा है कि ताइवान द्वीप चीन के क्षेत्र का एक अभिन्न अंग है, और यह कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकता।
• दो प्रणालियाँ: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना “एक देश, दो प्रणाली” ढांचे के तहत ताइवान के साथ पुनर्मिलन का प्रस्ताव देता है, जिसके तहत ताइवान को अपनी स्वायत्त शासन व्यवस्था बनाए रखने की अनुमति होगी।
• बल प्रयोग का खतरा: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ने बार-बार धमकी दी है कि यदि ROC स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा करता है तो वह सैन्य बल का उपयोग करेगा।
प्रमुख प्रभाव:
• अंतरराष्ट्रीय संबंध: एक चीन नीति ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को काफी प्रभावित किया है। केवल 14 देश ही रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को औपचारिक रूप से मान्यता देते हैं, जबकि PRC को संयुक्त राष्ट्र और अधिकांश देशों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
• ताइवान जलडमरूमध्य: ताइवान जलडमरूमध्य एक संभावित संघर्ष का क्षेत्र बना हुआ है, क्योंकि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना और रिपब्लिक ऑफ़ चाइना दोनों ही इस पर अपनी संप्रभुता का दावा करते हैं।
• क्षेत्रीय शांति: एक चीन नीति क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है, क्योंकि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना और रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के बीच संघर्ष पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है।
भारत और ताइवान के संबंध:
एक जटिल और गतिशील संबंध
भारत और ताइवान के बीच संबंध अनौपचारिक, बहुआयामी और मजबूत हैं। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था, संस्कृति, शिक्षा और लोगों से लोगों के संबंधों सहित कई क्षेत्रों में मजबूत संबंध हैं।
इतिहास:
• 1950 के दशक में भारत ने “एक चीन नीति” अपनाई, जिसके तहत उसने ताइवान को चीन का एक प्रांत माना।
• 1990 के दशक से, भारत ने ताइवान के साथ अनौपचारिक संबंधों को विकसित करना शुरू किया।
• 2000 के दशक में, दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में तेजी आई।
वर्तमान स्थिति:
• भारत और ताइवान के बीच अर्थव्यवस्था मजबूत है। 2022 में, द्विपक्षीय व्यापार $7.6 बिलियन तक पहुंच गया।
• संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ रहा है।
• लोगों से लोगों के संबंध भी मजबूत हैं, हजारों भारतीय ताइवान में रहते और काम करते हैं।
चुनौतियां:
• चीन, ताइवान के साथ भारत के संबंधों का विरोध करता है।
• भारत को चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है, जो ताइवान को अपना 23वां प्रांत मानता है।
• अमेरिका जैसे अन्य देशों के साथ भारत के संबंध भी इस मुद्दे को प्रभावित करते हैं।
भविष्य:
• भारत और ताइवान के बीच संबंधों के बढ़ने की संभावना है।
• अर्थव्यवस्था, संस्कृति, शिक्षा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ सकता है।
• चीन के साथ संबंधों को लेकर चुनौतियां बनी रहेंगी।
भारत और ताइवान के बीच संबंध महत्वपूर्ण हैं और दोनों देशों के लिए लाभदायक हैं। यह संबंध जटिल और गतिशील हैं, और भविष्य में भी बढ़ते रहने की संभावना है।
ताइवान और अमेरिका के सम्बन्ध:
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

• द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 1949 में, चीनी गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप, राष्ट्रवादी (Kuomintang) सरकार ताइवान द्वीप पर चली गई, जबकि साम्यवादी (Communist) सरकार ने चीन की मुख्य भूमि पर शासन स्थापित किया।
• अमेरिका ने शुरुआत में ताइवान को चीन की वैध सरकार के रूप में मान्यता दी थी और उसे सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की थी।
• 1972 में, अमेरिका ने चीन के साथ “एक चीन” नीति अपनाई, जिसके तहत उसने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) को चीन की एकमात्र वैध सरकार के रूप में मान्यता दी।
• हालांकि, अमेरिका ने ताइवान संबंध अधिनियम (Taiwan Relations Act) पारित करके ताइवान को अनौपचारिक संबंध और सुरक्षा प्रदान करना जारी रखा।
वर्तमान स्थिति:
• अमेरिका और ताइवान के बीच संबंध मजबूत लेकिन अनौपचारिक हैं।
• दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा संबंध हैं।
• अमेरिका ताइवान को आधुनिक हथियार बेचता है और द्वीप की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
• चीन ताइवान के साथ अमेरिकी संबंधों का दृढ़ता से विरोध करता है और इसे “एक चीन” नीति का उल्लंघन मानता है।
मुख्य मुद्दे:
• “एक चीन” नीति: यह नीति ताइवान और अमेरिका के बीच संबंधों का केंद्र बिंदु है।
• ताइवान की स्थिति: अमेरिका ताइवान को स्वतंत्र मानता है, जबकि चीन इसे अपना प्रांत मानता है।
• हथियारों की बिक्री: अमेरिका ताइवान को हथियार बेचता है, जिससे चीन नाराज है।
• सैन्य अभ्यास: चीन अक्सर ताइवान जलडमरूमध्य के पास सैन्य अभ्यास करता है, जिससे तनाव बढ़ जाता है।
भविष्य:

• ताइवान और अमेरिका के बीच संबंध जटिल और अनिश्चित बने रहने की संभावना है।
• “एक चीन” नीति और ताइवान की स्थिति पर दोनों देशों के बीच मतभेद बने रहेंगे।
• चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने से ताइवान जलडमरूमध्य में संघर्ष का खतरा बढ़ सकता है।
ताइवान और अमेरिका के बीच संबंध महत्वपूर्ण हैं और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को प्रभावित करते हैं। इन संबंधों का भविष्य अनिश्चित है और यह “एक चीन” नीति, ताइवान की स्थिति और चीन-अमेरिका संबंधों सहित कई कारकों पर निर्भर करेगा।

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