ये जीवन नित यूँ ही चलता जाता है…..
कौन कब ही क्या पाता है,
कोई आता है तो कोई जाता है,
नित संघर्ष से ही जीवन खिलखिलाता है,,
कोई चुनता आराम तो कोई काम हेतु खुद मिट जाता है,
कौन कब क्या ही पाता है,
जीवन नित नित चलता जाता है,,
जिनमें होता है कुछ करने का हुनर वो करता जाता है,
जिनमें न हो हुनर अपने आप का,
वक्त उन्हें सब कुछ सिखाता है,
ये जीवन नित यूँ ही चलता जाता है…..
है पुण्य धरा की धरती ये, कब खोती अपने वीरों को,
एक वीर की ख्याति से, ये आसमान, अम्बर सिखाता है,
गर करना है कुछ जीवन में,
तो संघर्ष में खुद को मिटाया जाता है,
केवल कुछ ही करने से कहाँ सबकुछ मिल पाता है,,””
ये जीवन नित यूँ ही चलता जाता है….
गर पाना है खुद को खुद की खातिर,
तो निज प्रयास में खुद को मिटाया जाता है,
होते होंगे बहाने सबके कुछ न करने के,
गर चमकना है तो, अपने लक्ष्य पर,
खुद मिट जाया जाता है,
दिन- रात बस लक्ष्य नींदों में भी बसाया जाता है,
तब भी ये जीवन नित यूँ चलता जाता है…
होगी कदम कदम दुश्वारी.
होगा एक एक पल भारी,
तुम्हारा धैर्य भी तब जवाब दे जाता है,
तब भी तुम्हारा अपना लक्ष्य यदि दिख पाता है,
तब तुम्हारा गुजरा एक एक दिन पुंज बन जाता है,,,
और वो बन सितारा तुम्हारे आसमान में तब टिमटिमाता है…
बस उसी दिन से तुम्हारा भाग्य उदय हो जाता है….
ये जीवन नित यूँ ही चलता जाता है,,||