बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन: BUDDHADEB BHATTACHARJEE PASSED AWAY : A Tribute to Bhuddhadeb Bhattacharjee
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का 8 अगस्त, 2024 को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और 80 वर्ष की आयु में कोलकाता स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।
बुद्धदेव भट्टाचार्य, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और वामपंथ के दिग्गज नेता, का 80 वर्ष की आयु में कोलकाता के बालीगंज स्थित अपने आवास पर निधन हो गया। वे अपनी पत्नी मीरा और बेटी सुचेतना के साथ पाम एवेन्यू स्थित दो बेडरूम के फ्लैट में रहते थे। उनकी बेटी सुचेतना ने हाल ही में लिंग परिवर्तन के लिए सर्जरी कराई थी, जिससे वे फिर से चर्चा में आए थे।
बुद्धदेव भट्टाचार्य को वामपंथ का सुधारवादी चेहरा माना जाता था। उन्होंने पश्चिम बंगाल को ‘दुनिया की सबसे सस्ती कार’ के साथ औद्योगीकरण के युग में ले जाने की कोशिश की थी। हालांकि, इस मुहिम में उन्हें अपनी पार्टी का पूरा समर्थन नहीं मिल सका। भट्टाचार्य 2000 में उस समय राष्ट्रीय सुर्खियों में आए जब उन्हें भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री ज्योति बसु के उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया। उनके नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में औद्योगिकीकरण की नीतियों को लेकर काफी चर्चा और विवाद हुआ।
बुद्धदेव भट्टाचार्य मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एक प्रमुख नेता थे और 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में राज्य में कई विकास कार्य हुए। हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान नक्सलवाद की समस्या भी गंभीर रूप से उभरी थी।
निधन पर शोक की लहर:
• राजनीतिक जगत: राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
• जनता: पश्चिम बंगाल के लोग उनके निधन से गहरा सदमा हैं।
बुद्धदेव भट्टाचार्य का राजनीतिक सफर:
• माकपा के एक कद्दावर नेता के रूप में उभरे।
• 2000 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने।
• 11 साल तक मुख्यमंत्री रहे।
• 2011 में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
बुद्धदेव भट्टाचार्य भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता थे और 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे।
उनका राजनीतिक सफर इस प्रकार है:
1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म 1 मार्च 1944 को हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की, जहां उन्होंने बंगाली साहित्य में डिग्री प्राप्त की।
2. राजनीतिक करियर की शुरुआत: वे बहुत कम उम्र में ही कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आए और 1960 के दशक में पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। उन्होंने छात्र आंदोलनों में हिस्सा लिया और पश्चिम बंगाल में CPI(M) के युवा संगठन के सदस्य बने।
3. विधानसभा चुनाव और मंत्री पद: भट्टाचार्य ने 1977 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीत हासिल की और फिर उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में सूचना और संस्कृति मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने राज्य की सांस्कृतिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. मुख्यमंत्री का कार्यकाल: 2000 में, ज्योति बसु के इस्तीफे के बाद, भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनाया गया। उनके नेतृत्व में, उन्होंने राज्य में औद्योगिकीकरण और निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश की। हालाँकि, नंदीग्राम और सिंगूर जैसी घटनाओं के कारण उनकी नीतियों का विरोध भी हुआ, जिससे अंततः 2011 के चुनाव में CPI(M) को हार का सामना करना पड़ा।
5. 2011 के बाद: 2011 में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद, भट्टाचार्य ने सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बना ली, लेकिन वे पार्टी के एक प्रमुख विचारक और नेता बने रहे।
बुद्धदेव भट्टाचार्य का राजनीतिक सफर पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें उन्होंने राज्य के विकास और परिवर्तन के लिए कई प्रयास किए, लेकिन साथ ही कई विवादों का भी सामना किया।
बुद्धदेव भट्टाचार्य का औद्योगीकरण अभियान पश्चिम बंगाल में उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान एक बड़ा मुद्दा बना। उनके इस प्रयास का उद्देश्य राज्य में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना था, लेकिन इस अभियान को लेकर उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा, खासकर वामपंथी पार्टी के भीतर से।
औद्योगीकरण अभियान और नंदीग्राम-सिंगूर विवाद:
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पश्चिम बंगाल में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कीं। इनमें से सबसे प्रमुख था टाटा मोटर्स की ‘दुनिया की सबसे सस्ती कार’ नैनो के लिए सिंगूर में फैक्ट्री लगाने का प्रस्ताव। इस फैसले के तहत किसानों से जमीन अधिग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन यह विवाद का कारण बन गई। कई किसानों ने जमीन अधिग्रहण का विरोध किया, जिससे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।
नंदीग्राम और सिंगूर में हुए विवादों ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को हिला दिया। नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें कई लोगों की जानें गईं। इन घटनाओं ने बुद्धदेव भट्टाचार्य की छवि पर गहरा प्रभाव डाला और उनके औद्योगीकरण अभियान को लेकर बड़े पैमाने पर आलोचना हुई।
पार्टी के भीतर विरोध:
बुद्धदेव भट्टाचार्य के औद्योगीकरण के इस प्रयास को उनकी पार्टी, CPI(M), के भीतर भी व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा। पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता इस बात से सहमत नहीं थे कि किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए। उनका मानना था कि यह पार्टी के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जो किसानों और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
परिणाम:
इस भारी विरोध के चलते नैनो परियोजना सिंगूर से हट गई और गुजरात में स्थानांतरित हो गई। इस विवाद और विरोध के कारण 2011 के विधानसभा चुनाव में CPI(M) को ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा।
बुद्धदेव भट्टाचार्य का औद्योगीकरण अभियान उनकी राजनीतिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय रहा, जिसने उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल की दिशा को निर्धारित किया।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
• बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म भूषण पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था।
• वे एक कट्टर कम्युनिस्ट विचारक थे।
बुद्धदेव भट्टाचार्य को मिले सम्मान
बुद्धदेव भट्टाचार्य को उनके राजनीतिक जीवन और योगदान के लिए कई सम्मानों के लिए नामांकित किया गया था, हालांकि उन्होंने सभी को स्वीकार नहीं किया।
प्रमुख सम्मान:
• पद्म भूषण: वर्ष 2022 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की थी। यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। लेकिन, उन्होंने इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था।
सम्मान लेने से इनकार करने का कारण:
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म भूषण सम्मान लेने से इनकार करते हुए कहा था कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि वे पार्टी के फैसले का इंतजार करेंगे।
सम्मान लेने से इनकार करने का महत्व:
• राजनीतिक विचारधारा: यह उनके राजनीतिक विचारधारा को दर्शाता है। उन्होंने हमेशा खुद को एक कम्युनिस्ट विचारक माना और शायद उन्होंने इस सम्मान को राज्य के सम्मान के रूप में देखा होगा, न कि व्यक्तिगत सम्मान के रूप में।
• सादगी: यह उनकी सादगी और सरल जीवनशैली को भी दर्शाता है।
बुद्धदेव भट्टाचार्य को मिले सम्मानों से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने अपने सिद्धांतों और विचारधारा के प्रति कितनी निष्ठा दिखाई। उन्होंने एक ऐसे समय में जब कई राजनेता सम्मानों को हासिल करने के लिए उत्सुक रहते हैं, अपने सिद्धांतों को प्राथमिकता दी।
अन्य जानकारी:
• बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में 11 साल तक सेवा की थी।
• वे माकपा के एक कद्दावर नेता थे।
• उन्होंने कई विकास कार्य किए, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान नक्सलवाद की समस्या भी गंभीर रूप से उभरी थी।
