चाइना ने अरेबिक की आखिरी मस्जिद को किया नष्ट
हाल ही में चीन ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक नीतियों के तहत एक प्रमुख मुस्लिम मस्जिद को नष्ट कर दिया है। यह घटना युन्नान प्रांत के नाजीइंग कस्बे में हुई, जहां 13वीं शताब्दी की नाजीइंग मस्जिद के चार मीनार और गुंबद को गिरा दिया गया। स्थानीय अदालत ने इन विस्तारों को अवैध घोषित किया था, जिसके बाद यह कार्रवाई की गयी ।
इस घटना के बाद, मस्जिद के संरक्षण के लिए विरोध कर रहे लोगों और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ। पुलिस ने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर किया और कुछ को गिरफ्तार भी किया गया। स्थानीय प्रशासन ने यह घोषणा की कि जो भी इस घटना में शामिल होंगे, उन्हें सख्त सजा दी जाएगी, जबकि आत्मसमर्पण करने वालों को कुछ राहत दी जा सकती है ।
यह घटना चीन में मुस्लिम समुदाय, विशेष रूप से हूई मुसलमानों, पर बढ़ते दबाव का हिस्सा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में चीन ने धार्मिक गतिविधियों पर कड़ी निगरानी और नियंत्रण बढ़ा दिया है। 2017 से, लगभग एक मिलियन उइघुर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को शिनजियांग क्षेत्र में ‘पुनः शिक्षा’ शिविरों में रखा गया है। इस प्रकार उद्देश्य धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों को ‘चीनीकरण’ करना है, जिसमें विदेशी प्रभावों को समाप्त करना शामिल है |
कितनी है चीन में मुस्लिम आबादी :
चीन में वर्तमान में लगभग 17 से 25 मिलियन मुसलमान हैं, जो कुल जनसंख्या का लगभग 2% हैं और उइघुर समुदायों से है। उइघुर मुख्य रूप से शिनजियांग क्षेत्र में रहते हैं, जबकि हुई मुस्लिम पूरे देश में फैले हुए हैं। इनके अलावा, अन्य मुस्लिम जातीय समूहों में कज़ाख, डोंग्शियांग, किरगिज़, और ताजिक शामिल हैं। चीन के मुस्लिम मुख्यतः सुन्नी इस्लाम का पालन करते हैं।
कौन है उइघुर मुस्लिम :-
उइघुर मुसलमान कौन हैं?
उइघुर मुसलमान मुख्यतः तुर्किक जातीय समूह हैं जो चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग में रहते हैं। वे ऐतिहासिक रूप से तुर्की और मध्य एशिया के क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। उइघुर लोग इस्लाम धर्म का पालन करते हैं, और इनकी संस्कृति और पहचान में इस्लाम का महत्वपूर्ण स्थान है। उइघुरों की आबादी लगभग 12 मिलियन (1.2 करोड़) है और वे चीन की 55 मान्यता प्राप्त जातीय अल्पसंख्यकों में से एक हैं ।
चीन में उइघुर मुसलमानों की स्थिति
चीन सरकार उइघुर मुसलमानों पर कई तरह के आरोप लगाती है, जिनमें अलगाववाद और आतंकवाद शामिल हैं। 2017 के बाद से, चीन ने शिनजियांग में बड़े पना की, जहाँ लाखों उइघुर मुसलमानों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में रखा गया है। इन शिविरों में उइघुरों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी की शपथ लेने, इस्लाम को त्यागने और चीनी भाषा और संस्कृति को अपनाने के लिए मजबूर किया जाता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इन शिविरों में कई प्रकार की यातनाएँ और दुर्व्यवहार होते हैं।
उइघुरों पर सरकारी दबाव
चीन सरकार ने उइघुर मुसलमानों की जन्मदर को नियंत्रित करने के लिए जबरन नसबंदी और गर्भपात की नीतियाँ भी लागू की हैं, जिसे कई विशेषज्ञ “जनसांख्यिकी नरसंहार” कहते हैं। इसके अलावा, उइघुरों की धार्मिक स्वतंत्रता, भाषाई पहचान और सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। चीनी सरकार का दावा है कि ये नीतियाँ चरमपंथ और आतंकवाद को रोकने के लिए आवश्यक हैं, जबकि मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह उइघुरों की पहचान को मिटाने का प्रयास है |
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चीन की इन नीतियों की कड़ी आलोचना हुई है। संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन और मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया है। हालांकि, चीन इन आरोपों को नकारता है और अपने कार्यों को आंतरिक सुरक्षा और स्थिरता के लिए आवश्यक बताता hai ।
उइघुर मुसलमानों की यह स्थिति वैश्विक चिंता का विषय है और उनकी स्थिति को लेकर जागरूकता और समर्थन बढ़ाने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं।
चीन में अल्पसंख्यकों की स्थिति काफी जटिल और चुनौतीपूर्ण है। चीन में 55 मान्यता प्राप्त जातीय अल्पसंख्यक समूह हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं उइघुर, तिब्बती, मंगोलियन और कजाख।
चीन की सरकार ने लंबे समय से राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए अल्पसंख्यकों के प्रति विभिन्न नीतियाँ अपनाई हैं, जिनमें कुछ हद तक स्वायत्तता, आर्थिक विकास में सहायता और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। 1950 के दशक में, अल्पसंख्यक क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया था। 1980 के दशक में, सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए स्वायत्त क्षेत्र और विशेष आर्थिक प्रोत्साहन दिए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ ।
हालांकि, हाल के वर्षों में उइघुर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति चीन की नीति काफी कठोर हो गई है। शिनजियांग में उइघुर मुसलमानों को व्यापक निगरानी, सामूहिक हिरासत शिविरों और जबरन पुनः शिक्षा कार्यक्रमों का सामना करना पड़ा है। मानवाधिकार संगठनों ने इसे मानवता के खिलाफ अपराध और सांस्कृतिक नरसंहार के रूप में वर्णित किया है।
तिब्बत में भी, तिब्बतियों को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है। तिब्बती भाषा और संस्कृति को कमजोर करने के प्रयास किए गए हैं, और तिब्बती बौद्ध मठों पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। इसी तरह की स्थिति मंगोलियाई और अन्य अल्पसंख्यक क्षेत्रों में भी देखने को मिलती है, जहां उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को कमजोर करने के प्रयास किए गए हैं ।
कुल मिलाकर, चीन में अल्पसंख्यकों की स्थिति असमान है। आर्थिक विकास और कुछ विशेषाधिकारों के बावजूद, उन्हें के संरक्षण के लिए गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चीन की वर्तमान नीतियों का लक्ष्य राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना है, लेकिन यह अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों और सांस्कृतिक अधिकारों के उल्लंघन की कीमत पर हो रहा है |